किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
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अर्थ: हे प्रभू आपके समान दानी और कोई नहीं है, सेवक आपकी सदा से प्रार्थना करते आए हैं। हे प्रभु आपका भेद सिर्फ आप ही जानते हैं, क्योंकि आप अनादि काल से विद्यमान हैं, आपके बारे here में वर्णन नहीं किया जा सकता है, आप अकथ हैं। आपकी महिमा का गान करने में तो वेद भी समर्थ नहीं हैं।
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
शिवलिंग पर कभी भी नारियल का पानी नहीं चढ़ाया जाता है हालंकि नारियल पूजा में काम में लिया जाता है।